लोभ लालच के मन में बोते बीज, देह बना रहे राजरोग की मरीज। कहें दीपकबापू सोच बना ली राख, तब चिंता निवारण पर मत खीज। -------- सोना चमके पर अनाज नहीं है। सुर लगे बेसुर क्योंकि साज नहीं है। कहें दीपकबापू महल तो रौशन राजा भी दिखे पर राज नहीं है। --- खबर से पहले घटना तय होती, विज्ञापन से बहस में लय होती। कहें दीपकबापू फिक्स हर खेल जज़्बात से सजी हर शय होती। ------ पत्थरों के टूटने पर क्यों रोते हो, दृष्टिदोष मन में क्यो बोते हो। कहें दीपकबापू नश्वर संसार में विध्वंस पर आपा क्यों खोते हो।। ---- बेरहमों ने बहुत कमा लिया, बंदरों के हाथ उस्तरा थमा दिया। कहें दीपकबापू मत बन हमदर्द दर्द ने अपना बाजार ज़मा लिया। --- तन मन की हवस एक समान, लालच के जाल में फंसा हर इंसान। कहें दीपकबापू धर्म कर्म से जो रहित, सौदागर देते सस्ते ग्राहक का मान। --- एक दूसरे में लोग ढूंढते कमी। आपस में नही किसी की जमी। कहें दीपकबापू दर्द बंटता है तभी जब कहीं शादी हो या गमी। ----
रोमियो को न रोईये मुंह ढंककर सोईये। शायरी बड़ी चीज है लिख लिखकर बोईये। -- भोगी ने बेहाल किया रोग ने दर्द दिया। जे कौन जोगी आया जिसने नया फर्ज दिया। - तस्वीरों से ऊब जाओ तब शब्द भी बोल दिया करो। आंखें थकी हों दिल की सोच भी तब खोल दिया करो। -- सबका भला कठिन है हमने इसलिये तख्त नहीं मांगा है। हैरान है यह देख लालचियों ने अपने घर में टांगा है। ------- दिल के कद्रदान कभी ऊबते नहीं है। मतलबपरस्त कभी जज़्बातों में डूबते नहीं है। ------- अपनी हंसी संभालकर रखना हमारे दर्द में दवा के काम आयेगी। अपनी खुशी बनाये रखना हमारा यकीन बचाने में काम आयेगी। -------- सर्वशक्तिमान का नाम का भी व्यापार हो जाता है। वहम के दरिया में कोई बंदा डूबता कोई पार हो जाता है। -
विध्वंस के दौर में उबाऊ बहसों में विचार युद्ध जारी है। तर्कशास्त्र कभी पढ़े नहीं डटे विद्वान मंच पर विचार युद्ध जारी है। कहें दीपकबापू निष्कर्ष से संबंध नहीं रखते उन बुद्धिमानों का शब्द से अर्थ की वसूली में विचार युद्ध जारी है। ------------
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