विध्वंस के दौर में उबाऊ बहसों में विचार युद्ध जारी है। तर्कशास्त्र कभी पढ़े नहीं डटे विद्वान मंच पर विचार युद्ध जारी है। कहें दीपकबापू निष्कर्ष से संबंध नहीं रखते उन बुद्धिमानों का शब्द से अर्थ की वसूली में विचार युद्ध जारी है। ------------
कत्ल की कहानी सनसनी कहलाती, इश्क से माशुका आशिक बहलाती। दीपकबापू रुपहले पर्दे सबकी आंख सौदागरों के मतलब सहलाती।। --- लोकतंत्र में मतलबपरस्त छवि चमकाने में लगे। लालची भी धर्मात्मा बनकर सेवा के लिये धमकाने में लगे। ----- चोर बन गये साहुकार घर के बाहर पहरेदार खड़े हैं। ‘दीपकबापू’ पतित चरित्र के व्यक्ति अखबार के विज्ञापन में बड़े हैं। ----- कभी विनाश कांड देखकर इतना जोर से मत रोईये। रात के अंधेरे में विकास रहता आप मुंह पर चादर ढंककर सोईये।। ---- सड़क पर होते वादे बांटते, तख्त पर बैठे प्यादे छांटते। ‘दीपकबापू’ मुखौटों की जाने चाल अपने आकाओं को नहीं डांटते। ---- देशी बोतल विदेशी ढक्कन लायेंगे, स्वदेशी जुमला परायी पूंजी सजायेंगे। ‘दीपकबापू’ रुपया घर का ब्राह्मण दावोस से डॉलर सिद्ध लायेंगे। --- शहर में आग यूं ही नहीं लगी, जरूर किसी में वोटों की भूख जगी। ‘दीपकबापू’ लोकतंत्र में अभिव्यक्ति खरीद कर पूंजी बनती उसकी सगी। -
रोमियो को न रोईये मुंह ढंककर सोईये। शायरी बड़ी चीज है लिख लिखकर बोईये। -- भोगी ने बेहाल किया रोग ने दर्द दिया। जे कौन जोगी आया जिसने नया फर्ज दिया। - तस्वीरों से ऊब जाओ तब शब्द भी बोल दिया करो। आंखें थकी हों दिल की सोच भी तब खोल दिया करो। -- सबका भला कठिन है हमने इसलिये तख्त नहीं मांगा है। हैरान है यह देख लालचियों ने अपने घर में टांगा है। ------- दिल के कद्रदान कभी ऊबते नहीं है। मतलबपरस्त कभी जज़्बातों में डूबते नहीं है। ------- अपनी हंसी संभालकर रखना हमारे दर्द में दवा के काम आयेगी। अपनी खुशी बनाये रखना हमारा यकीन बचाने में काम आयेगी। -------- सर्वशक्तिमान का नाम का भी व्यापार हो जाता है। वहम के दरिया में कोई बंदा डूबता कोई पार हो जाता है। -
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