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आम जनमानस की उपेक्षा करने वाले अंतर्जाल की ताकत समझें(aam janmanas ki upeksha karane wale social media ki takat samjhen)

                    सार्वजनिक जीवन में मानवीय संवेदनाओं से खिलवाड़ कर  सदैव लाभ उठाना खतरनाक भी हो सकता है। खासतौर से आज जब अंतर्जाल पर सामाजिक जनसंपर्क तथा प्रचार की सुविधा उपलब्ध है। अभी तक भारत के विभिन्न पेशेवर बुद्धिजीवियों ने संगठित प्रचार माध्यमों में अपने लिये खूब मलाई काटी पर अब उनके लिये परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं-यही कारण है कि बुद्धिजीवियों का एक विशेष वर्ग अंतर्जालीय जनसंपर्क तथा प्रचार पर नियंत्रण की बात करने लगा है।                               1993 में मुंबई में हुए धारावाहिक बम विस्फोटों का पंजाब के गुरदासपुर में हाल ही में हमले से सिवाय इसके कोई प्रत्यक्ष कोई संबंध नहीं है कि दोनों घटनायें पाकिस्तान से प्रायोजित है।  बमविस्फोटों के सिलसिले में एक आरोपी को फांसी होने वाली है जिस पर कुछ बुद्धिमान लोगों ने वैसे ही प्रयास शुरु किये जैसे पहले भी करते रहे हैं। इधर उधर अपीलों में करीब तीन सौ से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर किये-मानवीय आधार बताया गया। इसका कुछ सख्त लोगों ने विरोध किया। अंतर्जाल पर इनके विरुद्ध अभियान चलने लगा। इसी दौरान पंजाब के गुरदासपुर में हमला होने के बाद प

पर्दे पर तस्वीर-हिन्दी कविता(Parde par Taswir)

नहाकर कर से निकलो धुले कपड़ों पर हवा धूल डाल ही जाती है। कीचड़ को देखें कितना भी घृणा से कभी कमलमय हो ही जाती है। कहें दीपकबापू अच्छाई से बुराई का तुलना क्या करें यहां तो आंखों के पर्दे पर चल रही तस्वीर पल भर में खो ही जाती है। --------------------- लेखक एवं  संपादक- दीपक राज कुकरेजा  ‘ भारतदीप ’ लश्कर ,  ग्वालियर (मध्य प्रदेश) कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior http://dpkraj.blgospot.com यह आलेख इस ब्लाग  ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है। अन्य ब्लाग 1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका 2.अनंत शब्दयोग 3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका 4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका 5.दीपक बापू कहिन 6.हिन्दी पत्रिका  ७.ईपत्रिका  ८.जागरण पत्रिका  ९.हिन्दी सरिता पत्रिका

अभिव्यक्ति-हिन्दी शायरी(AbhiVyakti-HindiShayari)

हम पर निगाह रखते हाथ से इशारा कभी करते नहीं। हृदय में सद्भाव सामने आकर कभी शब्द भरते नहीं । कहें दीपकबापू अपनी चाहत से स्वयं ही तुम छिपते रहो मगर हम अपनी अभिव्यक्ति से डरते नहीं। ------------ लेखक एवं  संपादक- दीपक राज कुकरेजा  ‘ भारतदीप ’ लश्कर ,  ग्वालियर (मध्य प्रदेश) कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior http://dpkraj.blgospot.com यह आलेख इस ब्लाग  ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है। अन्य ब्लाग 1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका 2.अनंत शब्दयोग 3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका 4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका 5.दीपक बापू कहिन 6.हिन्दी पत्रिका  ७.ईपत्रिका  ८.जागरण पत्रिका  ९.हिन्दी सरिता पत्रिका

विचार युद्ध जारी है-हिन्दी व्यंग्य कविता(Vichar Yuddh Jari hai-Hindi Satire Poem)

विध्वंस के दौर में उबाऊ बहसों में विचार युद्ध जारी है। तर्कशास्त्र कभी पढ़े नहीं डटे विद्वान मंच पर विचार युद्ध जारी है। कहें दीपकबापू निष्कर्ष से संबंध नहीं रखते उन बुद्धिमानों का शब्द से अर्थ की वसूली में विचार युद्ध जारी है। ------------

कुत्ता बिल्ली और चूहा जैसे शब्दों से लोकप्रियता नहीं मिलती-हिन्दी व्यंग्य (Why Dog, Cat & rate word use for Any Popolar Parsanalty-Hindi Satire)

                        कभी कभी ट्विटर लोकप्रिय टेग देखकर उस पर लिखने का मन करता है। आज सोचा कि चलो कोई टेग देखें तो हैरानी हुई किसी पत्रकार के नाम से कुत्ता शब्द लिखकर लोकप्रिय टैग चलाया जा रहा है। हमने अंतर्जाल पर स्वयं ही अपने लिये एक आचरण संहिता बनायी है उसक अनुसार जिसकी प्रशंसा करनी होती है उसका नाम तो लिख देते हैं पर जिसकी आलोचना या विरोध करना हो उसका सीधे नाम न लिखकर व्यंजना विधा में संकेत देते हैं।  हमारी संस्कृत देवा भाषा कही जाती है जिससे हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं का सृजन स्वतः हुआ है।  इसके अनुसार शब्द तथा वाक्य की संरचना में शाब्दिक, लाक्षणिक तथा व्यंजना विधा में अपनी बात कही जाती है। पुराने रचनाकारों ने तो लाक्षणिक तथा व्यंजना विधा का उपयोग हमारी रचना परंपरा को एक महान स्थान दिलाया है।  ऐसे मेें किसी सार्वजनिक व्यक्तित्व के नाम से कुत्ता बिल्ली या चूहा जैसे शब्द जब सामने आते हैं तब असहजता का अनुभव होता है।                           सर्वश्रेष्ठ लेखक वही माने जाते हैं जो व्यंजना विधा का उपयोग करना जानते हैं। जो इसका उपयोग नहीं करते उनमें अपनी रचना या शब्द के प्रभाव को

बहते जाना आसान नहीं है-हिन्दी कविता (Bahate jana asan nahin hai-Hindi Poem)

हृदय की धड़कनों के साथ बहते जाना आसान नहीं है संवेदना की नाव में सवार होना भी जरूरी है। जुबान के शब्दों की लहर के साथ बहना आसान नहीं है सामने सवालों के झौंके आना भी जरूरी है। ‘दीपकबापू’ पत्थरों पर रंगीन स्याही से लिखना बहुत आसान नहीं है विचारों के जंगल में घुसना भी जरूरी है। -----

रोमियो को न रोईये मुंह ढंककर सोईये-छोटीकविताये एवं क्षणिकायें(Romeo ko n roiye munh dhankkar soeeye-HindoShrotPoem)

रोमियो को न रोईये मुंह ढंककर सोईये। शायरी बड़ी चीज है लिख लिखकर बोईये। -- भोगी ने बेहाल किया रोग ने दर्द दिया। जे कौन जोगी आया जिसने नया फर्ज दिया। - तस्वीरों से ऊब जाओ तब शब्द भी बोल दिया करो। आंखें थकी हों दिल की सोच भी तब खोल दिया करो। -- सबका भला कठिन है हमने इसलिये तख्त नहीं मांगा है। हैरान है यह देख लालचियों ने अपने घर में टांगा है। ------- दिल के कद्रदान कभी ऊबते नहीं है। मतलबपरस्त कभी जज़्बातों में डूबते नहीं है। ------- अपनी हंसी संभालकर रखना हमारे दर्द में दवा के काम आयेगी। अपनी खुशी बनाये रखना हमारा यकीन बचाने में काम आयेगी। -------- सर्वशक्तिमान का नाम का भी व्यापार हो जाता है। वहम के दरिया में  कोई बंदा डूबता कोई पार हो जाता है। -