मन मैले तन पर धवल वस्त्र पहन लेते-दीपकबापूवाणी (man maile tan par dhawaltra pahane-DeepakBapuWani)

राह पर निकले पता नहीं कहां जायेंगे, छोड़ा एक घर दूसरा ठिकाना जरूर पायेंगे।
‘दीपकबापू’ बरसों गुजरती जिंदगी यूं ही, इधर नहीं गये तो उधर जरूर जायेंगे।।
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भावना के व्यापार में सब लोग हैं चंगे, दान में बेचें दया बड़े दौलतमंद दिखें नंगे।
‘दीपकबापू‘ विज्ञापन जाल में फंसे सदा, नारे सुनकर केशविहीन खरीद लेते कंगे।।
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चमके दवा से चेहरे कंधे हैं फूले, अंदर बीमारी का घर कैमरे के सामने पांव झूले।
‘दीपकबापू’ पर्दे पर गधे भी लगे सुंदर, देखकर तांगे में जुते घोड़े अपनी चाल भूले।।
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मन मैले तन पर धवल वस्त्र पहन लेते, खिड़की से डालें कूड़ा सफाई ज्ञान गहन देते।
‘दीपकबापू’ प्रवचन भाषण में माहिर बहुत, शब्दो में भरे दया के नारे सबसे धन लेते।।
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हाथ फैलाये आकाश में उम्मीद से झाकें, दो पांव पर खड़े आंखों से पत्थर ताकें।
‘दीपकबापू’ सड़कों पर लहराते हथियार, कत्ल कर लाश पर अपनी हमदर्दी टांकें।।
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दुःख की अनुभूति बताये सुख भाव, अंग अंग का मोल समझाते लगे देह पर घाव।
‘दीपकबापू’ कल्पना विमान में खूब उड़ते, सत्य की नदी में पतवार से ही चले नाव।।
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