चोर बन गये साहुकार घर के बाहर पहरेदार खड़े हैं-दीपकबापूवाणी (Chor Ban Gaye sahukar Ghar ka bahar khade hain-DeepakBapuWani)

कत्ल की कहानी सनसनी कहलाती,
इश्क से माशुका आशिक बहलाती।
दीपकबापू रुपहले पर्दे सबकी आंख
सौदागरों के मतलब सहलाती।।
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लोकतंत्र में मतलबपरस्त
छवि चमकाने में लगे।
लालची भी धर्मात्मा बनकर
सेवा के लिये धमकाने में लगे।
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चोर बन गये साहुकार
घर के बाहर पहरेदार खड़े हैं।
‘दीपकबापू’ पतित चरित्र के व्यक्ति
अखबार के विज्ञापन में बड़े हैं।
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कभी विनाश कांड देखकर
इतना जोर से मत रोईये।
रात के अंधेरे में विकास रहता
आप मुंह पर चादर ढंककर सोईये।।
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सड़क पर होते वादे बांटते,
तख्त पर बैठे प्यादे छांटते।
‘दीपकबापू’ मुखौटों की जाने चाल
अपने आकाओं को नहीं डांटते।
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देशी बोतल विदेशी ढक्कन लायेंगे,
स्वदेशी जुमला परायी पूंजी सजायेंगे।
‘दीपकबापू’ रुपया घर का ब्राह्मण
दावोस से डॉलर सिद्ध लायेंगे।
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शहर में आग यूं ही नहीं लगी,
जरूर किसी में वोटों की भूख जगी।
‘दीपकबापू’ लोकतंत्र में अभिव्यक्ति 
खरीद कर पूंजी बनती उसकी सगी।
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