पर्दे पर तस्वीर-हिन्दी कविता(Parde par Taswir)


नहाकर कर से निकलो
धुले कपड़ों पर हवा
धूल डाल ही जाती है।

कीचड़ को देखें
कितना भी घृणा से
कभी कमलमय हो ही जाती है।

कहें दीपकबापू अच्छाई से
बुराई का तुलना क्या करें
यहां तो आंखों के पर्दे पर
चल रही तस्वीर
पल भर में खो ही जाती है।
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लेखक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
लश्करग्वालियर (मध्य प्रदेश)
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
hindi poet,writter and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://dpkraj.blgospot.com


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