जंग लगी ख्याल पर-हिन्दी लघुकवितायें (jang lagi khyal par-Hindi Laghu kaitaey HindiShortpoem)

आकाश के उड़ते पंछी
जमीनी कीड़ों की परवाह
कहां करते हैं।
नीचे आते केवल
दाना पानी पेट में भरते हैं।
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ढेर सारी किताबें
आले में सजी पड़ी हैं।
कभी पढ़ने के इरादे जरूर
अभी कंप्यूटर में आंखें गड़ी हैं।
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भूख पर बहस से
बहुत पेट भर जाते हैं।
पर्दे पर कोई रोटी नहीं पकाता
सब रुदन से रेट भर आते हैं।
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मकान बड़े बनाये
घर छोटे होते गये।
चार से दो हुए
फिर दो होकर
अकेले यादों में खोते गये।
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जंग लगी ख्याल पर
प्रगति पथ पर चले जा रहे हैं।
बनाया कागजों का स्वर्ग
हवा में जो गले जा रहे हैं।
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हादसों से 
पेशेवरों हमदर्दों की
मलाई बन जाती है।
शब्दों से पकती मदिरा
भरे ग्लास से
कलाई तन जाती है।
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