कुत्ता बिल्ली और चूहा जैसे शब्दों से लोकप्रियता नहीं मिलती-हिन्दी व्यंग्य (Why Dog, Cat & rate word use for Any Popolar Parsanalty-Hindi Satire)


                        कभी कभी ट्विटर लोकप्रिय टेग देखकर उस पर लिखने का मन करता है। आज सोचा कि चलो कोई टेग देखें तो हैरानी हुई किसी पत्रकार के नाम से कुत्ता शब्द लिखकर लोकप्रिय टैग चलाया जा रहा है। हमने अंतर्जाल पर स्वयं ही अपने लिये एक आचरण संहिता बनायी है उसक अनुसार जिसकी प्रशंसा करनी होती है उसका नाम तो लिख देते हैं पर जिसकी आलोचना या विरोध करना हो उसका सीधे नाम न लिखकर व्यंजना विधा में संकेत देते हैं।  हमारी संस्कृत देवा भाषा कही जाती है जिससे हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं का सृजन स्वतः हुआ है।  इसके अनुसार शब्द तथा वाक्य की संरचना में शाब्दिक, लाक्षणिक तथा व्यंजना विधा में अपनी बात कही जाती है। पुराने रचनाकारों ने तो लाक्षणिक तथा व्यंजना विधा का उपयोग हमारी रचना परंपरा को एक महान स्थान दिलाया है।  ऐसे मेें किसी सार्वजनिक व्यक्तित्व के नाम से कुत्ता बिल्ली या चूहा जैसे शब्द जब सामने आते हैं तब असहजता का अनुभव होता है।
                          सर्वश्रेष्ठ लेखक वही माने जाते हैं जो व्यंजना विधा का उपयोग करना जानते हैं। जो इसका उपयोग नहीं करते उनमें अपनी रचना या शब्द के प्रभाव को लेकर आत्मविश्वास का अभाव होता है। उनमें यकीन नहीं होता कि उसके लाक्षणिक या व्यंजना विधा को कोई समझेगा? हमारी दृष्टि से इस तरह अभद्र शब्द उपयोग करने वालों के पास अध्ययन तथा चिंत्तन का अभाव होता है इस कारण वह आत्मविश्वास की बजाय अतिविश्वास से यह सोचकर लिखते हैं कि हमारी बात लोगा जल्दी सुनेंगे। वह किसी विषय या व्यक्ति पर लिखते हैं उससे संबंधित पूरी जानकारी भी उनको नहीं होती उन्हें तो बस तात्कालिक रूप् से अपनी भडास निकालनी होती है। कहना चाहिये कि  अंतर्जाल ने कुंठित लोगों के लिये अभिव्यक्ति का एक सुगम साधन दिया है पर उसका उपयोग सभ्यता से उपयोग करने की जरूरत है।
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