प्यारी तस्वीरें भी साथ नहीं होती-दीपकबापूवाणी (Pyari Tasweeren bhi sath nahin hote-DeepakBapuWani)

जिन रास्तों पर चलें मोड़ बहुत मिले हैं, आदर्शों का नारं धोखे के जोड़ बहुत मिले हैं।
‘दीपकबापू’ सदाचार का किला भले बनाया, मजबूरियों को उसके तोड़ बहुत मिले हैं।।
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प्यारी तस्वीरें भी साथ नहीं होती, लकीरों के चेहरों में मोहब्बत हाथ नहीं हेती।
‘दीपकबापू’ दिमाग में पाले कामना का भूत, उन बंदों में दिल की बात नहीं होती।।
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जल थल नभ पर दबंगों का पहरा है, धन बल से भुजायें सजीं पर कान बहरा है।
‘दीपकबापू’ खंजर हाथ का सब चाहें साथ, इंसान में जान खोने का डर गहरा है।।
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भीड़ इकठ्ठी कर सुना रहे प्रेम संदेश, धर्म के रंग मे रंगा उनका पूरा वेश।
‘दीपकबापू’ अलग अलग मंचों पर सजे चेहरे, नारों से जगा रहे सोया देश।।
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उपदेश करें सभी से अपने मन में न झोकं, आंखो में भरी धूल पराये गिरेबा ताकें।
‘दीपकबापू’ गुलामी की आदत से स्वाभिमान भूले, सेठों के चाकर राजा जैसे फांकें।।
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लूट को कमाई कहें उनके सिर पर है ताज, बेईमानी को चतुराई माने कर रहे राज।
‘दीपकबापू’ सज्जन सभी को मान लेते सच्चा, ठग चाहे करते हों स्वयं पर नाज़।।
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