सब घर भय के भूत लटके हैं-दीपकबापूवाणी (sab ghar mein Bhay ke bhoot latke hain-DepakBapuwani0

महलवासी प्रजा का दर्द क्या जाने,
हवा के सवार टूटी सड़क क्या जाने।
कहें दीपकबापू जोड़ बाकी के ज्ञानी
शब्दों के अर्थ ज्ञान क्या जाने।
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असुरों ने नाम कंपनी रख लिया,
धन से राज लूटा चेहरा ढक लिया
कहें दीपकबापू मत कर शिकायत
खुश रह तूने थोड़ा विष ही चख लिया।
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दर्द सभी के सीने में
हमदर्दी किससे मांगें।
‘दीपकबापू’ करते हैं रोने में भी पाखंड
उनके रुंआसे शब्द किस दीवार पर टांगें।
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हमदर्दी का पाखंड सभी किये जाते,
साथ अपने दर्द भी दिये जाते।
कहें दीपकबापू चीखती सभा में
शब्द अपने अर्थ स्वयं ही पिये जाते।
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विद्या अब व्यापार हो गयी,
शब्दधारा धन की यार हो गयी।
कहें दीपकबापू क्या सवाल पूछें
हर जवाब की हार हो गयी।
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मत कर उस्तादी हमसे यार
तेरे जैसे कई शागिर्द हमने पढ़ाये हैं,
अपनी बड़ी उम्र पर न गरियाना
छोटी उम्र में बड़े गधे लड़ाये हैं।
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सब घर भय के भूत लटके हैं,
लालच में सबके दिल अटके हैं।
कहें दीपकबापू न ढूंढो भक्तिवीर
कामना के वन सब भटके हैं।
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गधा दौड़ पर बहस जारी है,
रोज नया खजाना लुटने की बारी है।
कहें दीपकबापू सशक्त प्रहरी
जरूर जिसे रोज चुकाना रंगदारी है।
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राजाओं का खेल जंग पर टिका है,
सबसे बड़ा कातिल नायक दिखा है।
कहें दीपकबापू सिंहासनों की जंग में
बहुतेरों के सिर हार का दाग लिखा है।
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