अंतर्जाल पर बैठा है समाज, बांट रहा सरेआम अपने राज-दीपकबापूवाणी (Socity par Baitha samaj-DeepakBapuWani)
रात कों करें धनियों की गुलामी
दिन में राजा जैसे घूमते हैं।
कहें दीपकबापू कौन करे सवाल
वह प्रचारकों के चरण चूमते हैं।
---
कैसे सच्चा माने पुराना इतिहास
रोज नया झूठा लिखते देख रहे हैं।
कहें दीपकबापू सेवा के नाम पर
सभी को मेवा खाते देख रहे हैं।
---
अंतर्जाल पर बैठा है समाज,
बांट रहा सरेआम अपने राज।
कहें दीपकबापू बस यह आभास ही है
हमारा दर्द समझ रहा कोई आज।
----
नीयत खराब तो अमृत क्या करेगा,
मृत भाव में सुख क्या प्राण भरेगा।
कहें दीपकबापू भक्ति रस
जिसने पिया वह किससे क्या डरेगा।
--
इसानी मुख सब जगह दिखते हैं,
हाथों से दर्द लिखते हैं।
कहें दीपकबापू मरे जज़्बातों से
हमदर्द रोते दिखते हैं।
Comments
Post a Comment